Folktale In Hindi | रूस की लोककथा (मूर्ख जमींदार) | Russian Folktale (The Foolish Landlord) in Hindi |

Lekhadda
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रूस की लोककथा (मूर्ख जमींदार)


                 भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में कोई भी देश ऐसा नहीं है जहां लोक कथाएं न हो। हर देश की प्राचीन सभ्यताएं इस बात की गवाह हैं कि लोकसंस्कृति और लोक कथाओं के बिना किसी भी सभ्यता का जीवित रहना असम्भव था। लोककथाओं के माध्यम से विभिन्न सभ्यता-संस्कृतियों की जानकारी मिलती है। जिससे यह पता चलता है कि वहां ले किस विशेष सभ्यता-संस्कृति के लोग रहते हैं, वे लोग किन देवी-देवताओं को पूजते हैं, क्या खाते-पीते हैं और उनके रीति-रिवाज कैसे होते हैं। आज के समय में भी किसी राष्ट्र की सभ्यता की पहचान वहां के लोकगीतों व लोककथाओं से ही होती है।


               यह लोककथा रूस की प्रसिद्ध लोककथाओं में से एक है। यह लोककथा आज भी उतनी ही सार्थक व सजीव हैं, जितनी अपने जन्मकाल में रही होंगी। आज भी ये लोक कथाएं न केवल व्यक्तियों का मनोरंजन करती हैं बल्कि किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन का सही मार्ग भी बताती हैं। 

रूस की लोककथा (मूर्ख जमींदार)

         रूस की लोककथा (मूर्ख जमींदार): यह कहानी एक बुढ़िया और उसके दो बच्चों की है। रूस के एक गांव में एक बुढ़िया अपने दो बेटों के साथ रहती थीं। उस बेचारी बुढ़िया का छोटा बेटा कुछ दिन पहले ही बीमारी से चल बसा और बड़ा बेटा, बुढ़िया को अकेला छोड़ काम-धंधे की तलाश में परदेश चला गया ! अब बुढ़िया बेचारी अकेली ही रह गई।


Russian Folktale (The Foolish Landlord) In Hindi


             अभी उसके बड़े बेटे को परदेश गए कुछ ही दिन हुए थे कि एक अजनबी नौजवान बुढ़िया के घर आया। उसने बुढ़िया के घर का दरवाज़ा खट–खटाते हुए बुढ़िया से  कहा "अम्मा! मैं एक मुसाफिर हूं केवल आज की रात मुझे अपने घर में ठहरने की जगह दे दो।"
बुढ़िया ने भीतर से ही आवाज दी "कौन है? अंदर आ जाओ...।"


         बुढ़िया से इजाजत मिलने पर वह अजनबी मुसाफिर घर के अंदर आ गया। तब बुढ़िया ने उससे पूछा- "तुम कहां से आ रहे हो?"


अजनबी ने कहा "दूसरी दुनिया से मैं वहीं का रहने वाला हूं, अम्मा।"


       "दूसरी दुनिया से, 'बुढ़िया फुसफुसाई। अचानक उसकी आंखों में चमक उभर आई। वह बोली- "मेरे छोटे बेटे को अभी मरे कुछ ही दिन हुए हैं। क्या तुमने उसे देखा है?"


            यह सुनकर वह अजनबी बोला, कैसा दिखता है आपका बेटा वहां तो मैंने कई नए लोगो को देखा है जो अभी हाल फिलहाल ही आए है। अगर आप अपने बेटे का हुलिया बता सकें तो मैं बताऊं मैंने आपके बेटे को देखा है या नहीं। अब वो बेचारी बुढ़िया उस अजनबी को अपने बेटे का हुलिया बताने लगी। उसके बेटे के बारे में जानकर अजनबी बोला "हां मैंने उसे देखा है, वह और मैं तो एक ही कमरे में रह रहे थे।"



"सच!" बुढ़िया खुश होते हुए बोली, "वह वहां क्या करता है बेटे?"


अजनबी बोला वह "भेड़–बकरियां चराता है।"


बुढ़िया बोली "ओह, यह तो बहुत कठिन काम है।"


          अजनबी बोला "और नहीं तो क्या? आप तो जानती हैं अम्मा कि भेड़–बकरियों को कैसी होती हैं। वे हमेशा झाड़ियों की तरफ ही भागती हैं। अम्मा आपके बेटे के कपड़े और जूते दोनों ही फट गए हैं। बहुत ही बुरा हाल है उसका। अगर आप उसे देखोगी तो आपका कलेजा मुंह को आने लगेगा, बेचारा!"


          अजनबी की बात सुन बुढ़िया को बड़ा दुख हुआ। वह आहत स्वर में बोली- “बेटा, मेरे पास एक अच्छा कपड़ा है, और कुछ पैसे भी हैं। क्या तुम यह सब मेरे बेटे के लिए ले जाओगे?"


        अजनबी बोला "खुशी से ले जाऊंगा, अम्मा। "अजनबी मन ही मन मुस्कराया। रात को खाना खाने के बाद वह अजनबी उस बुढ़िया से बोला अम्मा मैं सुबह–सुबह ही अपनी दुनिया में जानें के लिए निकलूंगा।



सुबह वह अजनबी बुढ़िया से कपड़ा और पैसा लेकर चलता बना।


          कुछ दिन के बाद बुढ़िया का बड़ा बेटा लौट आया। जब वह हाथ मुंह धो चुका तो बुढ़िया उसे खाना परोसते हुए बोली- "तुम्हारा छोटा भाई बड़े कष्ट में है।"


बड़े बेटे ने चौंककर अपनी मां की ओर देखते हुए पूछा- "यह तुमसे किसने कह दिया। "


        "बेटा! जब तुम नहीं थे तो दूसरी दुनिया से एक आदमी यहां आया था। उसने मुझे तुम्हारे स्वर्गीय छोटे भाई का पूरा हाल बताया। दूसरी दुनिया में वह तुम्हारे भाई के साथ एक ही कमरे में रहता था। मैंने उसके हाथ तुम्हारे भाई के लिए कपड़ा और कुछ पैसे भेज दिए हैं।"


          बुढ़िया की बात सुनते ही बड़े बेटे की त्योरियां चढ़ गईं। वह गुस्से से बोला- "मरने के बाद भला कोई लौटकर आया है। वह दूसरी दुनिया का नहीं, बल्कि इसी दुनिया का कोई धूर्त आदमी था जो तुम्हें लूटकर ले गया।"


      "ओह!" बुढ़िया बुझे हुए स्वर में बोली- "तू ठीक कहता है बेटा, ममतावश मैं उस बदमाश के बहकावे में आ गई।"


        "तुम बिलकुल मूर्ख हो। तुमने मुझे कंगाल बना दिया। " बेटा खाना अधूरा छोड़ उठ खड़ा हुआ।
"बेटा गुस्सा मत कर! मैं तो जाहिल बुढ़िया हूं, इस दुनिया में तो अच्छे-अच्छे लोग बेवकूफ बन जाते हैं।"


बुढ़िया ने बेटे को समझाने की कोशिश की। लेकिन बेटा भड़ककर बोला, "तुम जैसी मूर्ख कोई नहीं है।" 


"दुनिया में मुर्खों की कमी नहीं है बेटे। एक ढूंढ़ोगे तो हजार मिलेंगे।"


"ठीक है, मैं जा रहा हूं।" बेटा अपना झोला उठाता हुआ बोला- "अगर तुमसे बड़ा कोई मूर्ख मुझे मिला तो मैं अवश्य लौट आऊंगा-वरना कभी लौटकर नहीं आऊंगा।"


इतना कह बेटा दनदनाता हुआ घर से बाहर निकल गया। बुढ़िया बेचारी अपना-सा मुंह लेकर उसे जाते हुए देखते रह गई।

रूस की लोककथा (मूर्ख जमींदार)

चलते-चलते बुढ़िया का बेटा एक गांव में पहुंचा और वहां वह एक जमींदार के खलिहान के पास रुक गया। वहां एक गधी अपने बच्चों के साथ घास चर रही थी। बुढ़िया का बेटा उस गधी के सामने घुटने टेक कर बैठ गया और कुछ बुदबुदाने लगा। जमींदारनी खिड़की से उसकी यह हरकत देख रही थी। उसे बड़ी हैरानी हुई। वह अपनी नौकरानी से बोली- "जरा उस आदमी से जाकर तो पूछ कि वह हमारी गधी के साथ क्या कर रहा है?"


नौकरानी बाहर आई और उसके पास पहुंचकर बोली- "अरे भाई! तुम हमारी गधी के सामने क्यों बैठे हो?"


          बुढ़िया का बेटा नौकरानी से बोला "भलीमानस, तुझे दिखता नहीं। यह भी मेरी घरवाली की तरह है। मैं इसे तुरन्त पहचान गया। हो न हो यह मेरी घरवाली की बहन ही है। मैं तो इसे अपने लड़के की शादी में लिवा ले जाना चाहता हूं। शादी कल ही होनी है।"


"गधी और तुम्हारी साली।" नौकरानी हंसी फिर बोली- "अरे मूर्ख। यह गधी तो मेरी मालिकिन की चहेती है। तुम इसे अपने साथ कहीं नहीं ले जा सकते।"



        बुढ़िया का बेटा भावुक होते हुए बोला "जरा अपनी मालिकिन से पूछ तो लो बहन।" वह गिड़गिड़ाया, "अगर यह मेरे साथ नहीं गई तो मेरी पत्नी बहुत नाराज हो जाएगी।" इतना कहने के साथ ही उसकी आंखों से आंसू भी निकलने लगे। अब नौकरानी को उस पर दया आ गई। वह बोली- "ठीक है, जरा रुको। मैं मालिकिन से पूछकर बताती हूं। "नौकरानी वापस लौट गई।


          नौकरानी ने अपनी मालिकिन को सारा किस्सा सुनाया तो वह भी जोर-जोर से हंसने लगी। फिर बोली- "बड़ा मूर्ख आदमी है। गधी को अपनी साली कह रहा है।"


"यही नहीं मालिकिन वह अपने बेटे की शादी में उस गधी को ले जाने की जिद्द भी कर रहा है। मुझे तो उसका रोना देखकर दया आ गई।"


        "ठीक है। उस मूर्ख को अपनी इच्छा पूरी कर लेने दो।" जमींदारनी ने कहा "पर गधी अकेली कैसे जा सकती है। उससे कहो कि गधी के बच्चे भी साथ जाएंगे। क्योंकि बच्चों को अगर दूध न मिला तो वे मर जाएंगे।"


         "जी मालिकिन। "इतना कह नौकरानी जाने के लिए मुड़ी ही थी कि जमींदारनी उसे रोकते हुए बोली, "और सुन! उससे कहना वह हमारी बग्घी भी ले जाए जिससे शादी के बाद गधी को उसके बच्चों समेत वापस पहुंचाने में उसे देर न हो।"


       नौकरानी ने वैसा ही किया। बग्घी में घोड़े जोत दिए। उसने बग्घी पर गधी और बच्चों को बिठाकर बुढ़िया के बेटे को भी बग्घी में बैठने को कहा। बुढ़िया का बेटा भी बग्घी में चढ़ बैठा और अपने घर की तरफ चल दिया। कुछ देर बाद जब जमींदार घर लौटा तो पत्नी को हंसी से लोटपोट होते हुए देख अपनी जिज्ञासा न रोक पाया। वह बोला- "क्या बात है, कुछ मैं भी तो जानूं।"



         "ओ, हो! बड़े मजे की बात है। आप यहां होते तो आप भी हंसते-हंसते पागल ही हो जाते। "तब जमींदारनी ने विस्तार से बताते हुए कहा, "एक मूर्ख आया था। वह हमारी गधी के सामने बैठा हाथ जोड़ रहा था। हमने पुछवाया तो कहने लगा, 'आपकी गधी मेरी घरवाली की बहन है। इसलिए मुझे उसे अपने लड़के की शादी में ले जाने की इजाजत दे दो।' इतना कह जमींदारनी फिर हंसने लगी।
अपनी पत्नी की हंसी से चिढ़कर जमींदार बोला, "हंसना बंद करो और यह बताओ कि फिर तुमने क्या किया?"


        "हमने उसे अपनी गधी उसके बच्चों के साथ ले जाने को कहा। वह मान गया। हमने उसे अपनी एक बग्घी भी दे दी। ताकि मेरी गधी और उसके बच्चों को वापस लाने में वह देर न करे।"


पत्नी की बात सुन जमींदार ने अपना माथा पीट लिया।


"क्या हुआ? तुम माथा क्यों पीट रहे हो।" जमींदारनी हैरत-भरे स्वर में बोली।


"मूर्ख! उस बदमाश ने तुझे मूर्ख बनाया है। वह अब कभी लौटकर नहीं आएगा...!"


"हाय अब क्या होगा...।" जमींदारनी जोर–जोर से विलाप करने लगी।


"वह व्यक्ति कहां का रहनेवाला था?" जमींदार ने अपनी पत्नी से पूछा।


"यह तो मैंने नहीं पूछा।" जमींदारनी बोली।


           जमींदार अपनी पत्नी की बेवकूफी पर बहुत क्रोधित हुआ। फिर उसने सोचा कि वह चालाक व्यक्ति अभी रास्ते में ही होगा। इस विचार के आते ही वह घर से निकला और अपने घोड़े पर सवार हो उसी दिशा में चल दिया, जिधर वह गया था। जमींदार का घोड़ा हवा की तेजी से दौड़ रहा था।


          उधर, बुढ़िया के बेटे ने पीछे से आती घोड़े के टापों की आवाजें सुनी तो वह फौरन खतरे को भांप गया। उसने बग्घी, गधी और उसके बच्चों को जंगल में छुपा दिया और खुद जाकर रास्ते के किनारे पर बैठ गया। वह जमीन पर अपनी टोपी को रखकर ताकत से पकड़े हुए था।


 

        थोड़ी देर बाद जमींदार बुढ़िया के बेटे के पास से गुजरा। अचानक जमींदार ने घोड़ा रोककर उससे पूछा, "भाई! क्या तुमने किसी आदमी को बग्घी पर यहां से जाते हुए देखा है?" हां। देखा तो है।" बुढ़िया का बेटा तपाक से बोला- "वह उधर जंगल की तरफ गया है। काफी देर पहले की बात है।"


"कोई बात नहीं! मैं उसे पकड़कर ही दम लूंगा। मुझे उसे पकड़ना ही है।"


"उसे पकड़ना तो काफी मुश्किल काम है। अब तो वह बहुत दूर न जाने कहां निकल गया होगा और आप इस जंगल के रास्तों से अच्छी तरह परिचित भी नहीं होंगे", बुढ़िया का बेटा बोला।


"सुनो, भले आदमी, क्या तुम उस धूर्त को पकड़ने में मेरी मदद कर सकते हो।"


"नहीं! यह तो मैं नहीं कर सकता। मेरी टोपी के नीचे एक बाज बैठा हुआ है। अगर मैं यहां से हिला तो वह उड़ जाएगा और मेरा नुकसान हो जायेगा।"


"तुम घबराओ नहीं भाई! मैं तुम्हारे पीछे तुम्हारे इस बाज की रखवाली करूंगा।" मेरे होते तुम्हारा बाज इस टोपी से निकल कर कहीं नहीं जाएगा।


"माफ करना भाई! इतना कीमती बाज मैं एक अजनबी के भरोसे छोड़कर नहीं जा सकता। अगर यह कीमती बाज मुझसे खो गया तो मेरा मालिक मेरा जीना दूभर कर देगा।"


"क्या कीमत है इस बाज की?" जमींदार ने पूछा।


"पूरे 200 सौ रूबल।" बुढ़िया के बेटे ने कहा।


"ठीक है। अगर मुझसे बाज खो गया तो मैं तुम्हें इस बाज के दाम दे दूंगा!"


रूस की लोककथा (मूर्ख जमींदार)

"कोरी बातों से रोटी नहीं चुपड़ी जाती, मालिक! "बाद में आप अपनी बात से मुकर गए तो मेरा क्या होगा?" बुढ़िया के बेटे ने जमींदार से कहा, "अरे भाई! तो तुम्हें मुझ पर यकीन नहीं है।" 

         इतना कह कर जमींदार ने अपनी कमर में बंधी थैली खोली और 200 सौ रूबल बुढ़िया के बेटे के हाथ में थमा दिए फिर जमींदार बोला, तुम्हारे "बाज की कीमत तुम्हें मिल गई। अब तो तुम्हें यकीन हो गया होगा।"


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"क्यों नहीं मालिक।" बुढ़िया का बेटा बोला, "आप इस टोपी को जरा कस के पकड़ लीजिए और तब तक पकड़े रहिए जब तक मैं लौटकर न आऊं।"


          जमींदार तुरंत टोपी पकड़कर बैठ गया। तब बुढ़िया का बेटा उसके घोड़े पर सवार हो जंगल की ओर चल दिया। जल्द ही वह जमींदार की नजरों से ओझल हो गया।


           इधर, जमींदार को टोपी की रखवाली करते कई घण्टे बीत गए। सूरज छिपने का भी वक्त हो गया था लेकिन बुढ़िया के बेटे का कहीं अता-पता न था।


         अचानक जमींदार के मन में ख्याल आया। 'देखूं, इस टोपी के नीचे कोई बाज है भी या नहीं। अगर है तो वह जरूर लौटेगा, अगर बाज न हुआ तो फिर उसका इंतजार करना बेकार है।


उसने टोपी उठाकर देखा। नीचे बाज तो क्या, कोई चिड़िया का बच्चा भी नहीं था।


"बदमाश, बेईमान ! मालूम पड़ता है, यह वही धूर्त व्यक्ति था जिसने मेरी पत्नी को मूर्ख बनाया था।"

 जमींदार मन-ही-मन अपनी मूर्खता पर झुंझलाता हुआ पैदल ही घर की ओर चल दिया।


           उधर, बुढ़िया का बेटा भी अपने घर पहुंचकर अपनी मां से बोला- "अम्मा! दुनिया में मूर्खों की कोई कमी नहीं है। यहां तो तुमसे भी बड़े-बड़े मूर्ख पड़े हैं। देखो मैं बग्घी, 200 सौ रूबल, घोड़ा, गधी और के साथ उसके बच्चे मुफ्त में ही कमा लाया हूं। अब मैं यहीं तुम्हारे साथ रहूंगा।"


          बुढ़िया अपने बेटे के मुख से सारा किस्सा सुन बहुत दुखी स्वर में बोली- बेटा, "तूने यह अच्छा नहीं किया। किसी को ठगना अच्छी बात नहीं है।"



"वह अजनबी मुसाफिर भी तो तुम्हें ठगकर गया था न अम्मा।" बुढ़िया का बेटा बोला।


"अगर सभी लोग गलत व्यक्तियों का अनुसरण करने लगेंगे तो यह दुनिया ठगों और पापियों से भर जाएगी बेटा। कोई भी कभी भी किसी पर विश्वास नहीं करेगा।"


          बुढ़िया ने बेटे को समझाया "जाओ और अब उस जमींदार का सारा सामान उसे वापस कर आओ।"


अब बुढ़िया के बेटे की आंखें खुल गईं। वह सारा समान लेकर जमींदार के घर की ओर चल पड़ा।


इस तरह से एक मां अपने भटके हुए बेटे को सत्य की राह दिखाने में सफल हो गई। हर मां-बाप को अपने बच्चों को इसी तरह की अच्छी शिक्षा देनी चाहिए।

रूस की लोककथा (मूर्ख जमींदार) से सीख :

         प्रत्येक लोक कथा में बुराई पर अच्छाई की ही विजय होती है। क्यूंकि उसमें संदेश होता है कि जीवन में प्रसन्नता, सुख एवं शांति के लिए व्यक्ति को अच्छाई की राह पर ही चलना चाहिए। क्यूंकि बुराई का फल अंत में बुरा ही होता है।



Note: The story shared here is not my original creation, I have read and heard it many times in my life and I am only presenting its Hindi version to you through my own words.

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