यूनान की लोककथा घमंड का दंड
Famous Greek Folktale Punishment of Arrogance
भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में कोई भी देश ऐसा नहीं है जहां लोक कथाएं न हो। हर देश की प्राचीन सभ्यताएं इस बात की गवाह हैं कि लोकसंस्कृति और लोक कथाओं के बिना किसी भी सभ्यता का जीवित रहना असम्भव था।
लोककथाओं के माध्यम से विभिन्न सभ्यता-संस्कृतियों की जानकारी मिलती है। जिससे यह पता चलता है कि वहां किस विशेष सभ्यता-संस्कृति के लोग रहते हैं, वे लोग किन देवी-देवताओं को पूजते हैं, क्या खाते-पीते हैं और उनके रीति-रिवाज कैसे होते हैं। आज के समय में भी किसी राष्ट्र की सभ्यता की पहचान वहां के लोकगीतों व लोककथाओं से ही होती है।
Famous Greek Folktale Punishment of Arrogance | यूनान की प्रसिद्ध लोककथा घमंड का दंड
यह लोककथा प्राचीन यूनान की प्रसिद्ध लोककथाओं में से एक है। यह लोककथा आज भी उतनी ही सार्थक व सजीव हैं, जितनी अपने जन्मकाल में रही होंगी। आज भी ये लोक कथाएं न केवल व्यक्तियों का मनोरंजन करती हैं बल्कि किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन का सही मार्ग भी बताती हैं।
यूनान की प्रसिद्ध लोककथा घमंड का दंड: यह कहानी आन्या नाम की एक घमंडी लड़की की है। जिसने अपने घमंड की वजह से अपना सब कुछ खो दिया था।
प्राचीन यूनान के एक नगर में आन्या नाम की लड़की ने एक गरीब परिवार में जन्म लिया था। आन्या अपने गरीब परिवार के साथ बड़े कष्ट में अपने जीवन के दिन गुजार रही थी। बचपन में वह एक साधारण लड़की प्रतीत होती थी परंतु जैसे-जैसे वह बड़ी होने लगी, उसमें एक विलक्षण प्रतिभा का समावेश नजर आने लगा।
आन्या ने सिलाई-कढ़ाई तथा कपड़ा बुनने के कार्य में अपनी रुचि इतनी ज्यादा दिखाई कि जल्द ही उसने इस कला में महारत हासिल कर ली।
उसके परिवार वाले भी उसके काम को देखकर गर्व से फूले नहीं समाते थे। वह रंगीन धागों से कपड़ों पर ऐसे फूल काढ़ती, जो देखने में असली मालूम होते थे। आन्या का काम देखकर बड़े-बड़े कारीगर भी दंग रह जाते आखिर इतनी छोटी सी उम्र में ये इतनी बेहतरीन कारीगरी कैसे कर रही है। जिसकी वजह से दूर-दूर तक आन्या के काम की प्रशंसा होने लगी ।
आन्या के काम की बारीकियों को देखकर धनी परिवारों की महिलाएं उसे मुंह मांगे दाम देकर काम करवातीं। दुकानदार भी आन्या के हाथों से बने कपड़े को ऊंचे दाम देकर खरीद लेते। धीरे-धीरे आन्या का काम इतना बढ़ गया कि उसके परिवार के बुरे दिन समाप्त हो गए।
अब आन्या के परिवार को भी नगर के सम्पन्न और विशिष्ट परिवारों में गिना जाने लगा।
आन्या के माता-पिता हर समय अपनी बेटी की कला का गुणगान करते रहते थे। इससे आन्या को कुछ घमंड हो गया। अब तो वह सबको अपने से नीचा समझने लगी। वह केवल उसे ही अपने पास बैठने देती, जो केवल उसकी और उसके काम की प्रशंसा करता। अपने सामने आन्या को किसी और की प्रशंसा सुनना बिल्कुल भी गवारा नहीं था।
एक दिन आन्या अपनी सहेलियों के सामने डींग हांकती हुई बोली- "मैं भाले ही अभी छोटी हूं, परंतु मेरी कला का कोई जवाब नहीं। आखिर किसमें इतना दम है जो मेरा मुकाबला कर सके। अरे, मैं तो यह तक कहती हूं कि मेरी कला के आगे तो खुद देवी मिनर्वा भी नहीं टिक सकती।"
मिनर्वा को यूनान में कला और ज्ञान की देवी कहा जाता है। मिनर्वा आन्या की यह बात सुनकर चौंक उठी।
आन्या की अहंकार से भरी बातें सुनकर देवी मिनर्वा को क्रोध आ गया। अतः देवी मिनर्वा ने एक बुढ़िया का रूप धारण किया, और लाठी टेकती हुई आन्या के घर जा पहुंची।
उस समय आन्या अपनी सहेलियों के साथ बैठी थी। वह अपनी बनाई चिड़ियां, फूल और उनपर बैठी व उड़ती हुई तितलियां, उन्हें दिखाकर गर्वीले स्वर में बोली- "जरा देखो तो, क्या ऐसी सुंदर कलाकारी देवी मिनर्वा कर सकेगी?"
वह कलाकृति वास्तव में बहुत ही सुंदर बनी थीं। देवी ने आन्या के सिर पर हाथ फेरकर कहा, "बेटी! इतनी बड़ी-बड़ी बात कहना तुम्हारे लिए ठीक नहीं है। कभी भी नश्वर प्राणियों को अमर देवी-देवताओं के साथ बराबरी नहीं करनी चाहिए।
चलो, अब अपनी इस भूल के लिए तुम देवी मिनर्वा से क्षमा मांगो, देवी मिनर्वा दयालु हैं वो तुम्हें अवश्य क्षमा कर देंगी।
"उस बुढ़िया के भेष में स्वयं देवी मिनर्वा आन्या को समझाती हुई बोली, अगर "देवी-देवता वरदान देते हैं, तो वो श्राप भी दे सकते हैं, कहीं ऐसा न हो कि तुम्हें अपनी गलती के लिए जीवनभर पछताना पड़े।"
आन्या घृणापूर्वक चिल्ला कर बोली, "दूर हट बुढ़िया! मुझे किसी देवी–देवता का भय नहीं है। यदि देवी मिनर्वा में साहस है, तो आकर मुझसे मुकाबला कर ले।"
आन्या का ऐसा बर्ताव देखकर देवी मिनर्वा अपनी लाठी फेंककर क्रोध से गरजी, "तो हो जाओ मुकाबले के लिए तैयार, मैं आ गई हूं।"
इतना कहते हुए बुढ़िया अपने वास्तविक रूप में प्रकट हो गई। देवी मिनर्वा को देख, वहां बैठी सारी लड़कियां उन्हे प्रणाम करने लगीं, परंतु मूर्ख आन्या अपने घमंड में चूर बिना उनका अभिवादन किए, वैसे ही तनी बैठी रही।
उस बुढ़िया का असली रूप देखकर भी उसका घमंड नहीं टूटा। वह तुरंत बोली, ठीक है। आओ मुकाबला करके देख लो। आज तो तुम्हें भी पता चल जाएगा कि आन्या ही सर्वश्रेष्ठ है।"
देवी मिनर्वा ने आन्या कि चुनौती को स्वीकार किया और वहां रखा करघा कपड़ा बुनने के लिए उठाया और पलक झपकते ही देवी मिनर्वा ने उसे बुन डाला। देवी मिनर्वा ने उस पर अनेक देवी-देवताओं के चित्र बुने हुए थे जो बिल्कुल सजीव लग रहे थे।
इधर आन्या भी दूसरे करघे पर कपड़ा बुनने लगी। उसने अपने कपड़े पर एक सुंदर उपवन का दृश्य बनाया था। आन्या की सहेलियां यह अनोखी प्रतियोगिता को बड़ी ही उत्सुकतापूर्वक व अचम्भे से देख रही थीं।
करघे से कपड़ा उतारकर जब आन्या ने सबके सामने फैलाया, तो देवी मिनर्वा को भी उसकी कला का लोहा मानना पड़ा।
आन्या देवी मिनर्वा का उपहास उड़ाते हुए बोली, “अब बताओ, श्रेष्ठ कौन है, मैं या तुम?"
"अपने मुंह से ही अपनी तारीफ करना मूर्खता के सिवा कुछ नहीं है।" देवी मिनर्वा ने आन्या को फिर सचेत किया।
"इस दुनिया की ऊंच-नीच से बेखबर तुम अभी अबोध हो। तुम्हें इस प्रकार से अहंकार नहीं करना चाहिए। "
लेकिन अहंकार में चूर आन्या भला कहां मानने वाली थी। वह तुरंत बोली, " अब यह सब बातें छोड़ो देवी मिनर्वा और मेरी सभी सहेलियों के सामने अपनी हार स्वीकार करो।"
आन्या की बात सुनकर देवी मिनर्वा को क्रोध आ गया। उन्होंने क्रोध मे आकर आन्या को श्राप दे दिया- "मूर्ख लड़की। तूने मेरा अपमान किया है। मैं तुझे श्राप देती हूं, आज के बाद तू लड़की नहीं रहेगी। लोग तुझसे घृणा करेंगे। तेरी प्रजाति के लोग भी तेरे किए इस अपराध का दंड भुगतेंगे।" इतना कह देवी अन्तर्धान हो गई।
आन्या की सहेलियों को उस समय बड़ा आश्चर्य हुआ जब उन्होंने अचानक आन्या के बालों को झड़कर गिरते देखा।
देखते-ही-देखते आन्या के सिर से सारे के सारे बाल झड़ गए और आन्या बिल्कुल गंजी हो गई और इसके साथ ही उसके शरीर ने पिचककर एक मकड़ी का रुप ले लिया अब आन्या ने एक घिनौना रूप धारण कर लिया था।
आन्या कि सहेलियां आन्या का यह रूप देख डरकर दूर भाग गईं। अब आन्या के पास घमंड करने लायक कोई गुण नहीं था।
वह कमरे के एक कोने की छत पर पहुंचकर अपने ही धागे से जा लटकी और अपने इर्द-गिर्द जाल बुनने लगी। उसे अपने घमंड दी सजा मिल चुकी थी।
Famous Greek Folktale Punishment of Arrogance | यूनान की प्रसिद्ध लोककथा घमंड का दंड कहानी से सीख:
यूनान की प्रसिद्ध लोककथा घमंड का दंड कहानी से हमें ये सीख मिलती है, कि हमें कभी भी अपने किसी भी कार्य की दक्षता पर घमंड नहीं करना चाहिए। इसके साथ ही हमें यह भी शिक्षा मिलती है कि हमें अपनों से बड़ों का मान-सम्मान करना चाहिए।
Note: The story shared here is not my original creation, I have read and heard it many times in my life and I am only presenting its Hindi version to you through my own words.
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