राजा और भिक्षा पात्र | The King And The Alms Bowl | Motivational Story In Hindi

Lekhadda
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राजा और भिक्षा पात्र


                  (राजा और भिक्षा पात्र | The King And The Alms Bowl | Motivational Story In Hindi) कहानी में- एक बार एक भिक्षु राजा के पास आया। भिक्षु जब राजा के पास पहुंचा तो वह राजा से बोला कि क्या मुझे कुछ भिक्षा मिल सकेगी ? राजा ने कहा हमारे पास किसी चीज की कोई कमी नहीं है जो चाहो  वह मांग लो। 

Motivational Story In Hindi | राजा और भिक्षा पात्र | The King And The Alms Bowl


                 भिक्षु ने राजा के सामने एक बहुत ही अजीब सी शर्त रखी, वह बोला की वह भिक्षा तभी लेगा जब उसका यह भिक्षा पात्र पूरा भर दिया जायेगा। भिक्षु बोला! बोलिये महाराज क्या आप यह वचन देते हैं, की आप यह भिक्षा पात्र पूरा भर देंगे, मैं अधूरा भिक्षापात्र लेकर यहाँ से नहीं जाऊँगा। 

भिक्षु की इस प्रकार की शर्त की खबर पुरे नगर में फ़ैल गयी और धीरे-धीरे राजमहल के सामने इस प्रसंग को देखने के लिए लोगों की भीड़ इकठ्ठा हो गयी।  


भिक्षु की बात सुनकर राजा मुस्कुराया और बोला, अरे भाई! 'तुमने आखिर मुझे क्या समझ रखा है, मैं राजा हूँ, क्या  मैं एक भिक्षु का यह छोटा सा  भिक्षा पात्र भी न भर सकूंगा?  मुझे शर्त स्वीकार है।'

               यह सुनकर भिक्षु रहस्यमयी मुस्कान लिए हुए बोला सोच लीजिये महाराज! मुझे जो चाहिए यदि वह आप नहीं दे पाए तो इतने लोगों के सामने आपकी जग हंसाई हो जाएगी, आप एक बार फिर सोच लें क्योंकि न जाने कितने ही लोगों ने यह शर्त स्वीकार की है और वे इसे पूरा नहीं कर पाए।  


             राजा और भिक्षा पात्र: भिक्षु की बात सुनकर राजा को थोड़ा गुस्सा आया पर भीड़ के सामने अपने गुस्से को पीते हुए राजा ने अपने मंत्री को यह आदेश दिया की जाओ इस भिक्षु के भिक्षा पात्र को अब अन्न से नहीं बल्कि हीरे और मोतियों से भर दो।' भिक्षु एक बार फिर बोलने ही वाला था की राजा ने उसकी बात को अनसुना करते हुए अपने मंत्री से कहा, मंत्री समय व्यर्थ  न करो, तुरंत  जाओ और भिक्षु के भिक्षापात्र को बहुमूल्य हीरे-मोती और रत्नों से भर दो।'

मंत्री तुरंत गया और ढेर सारे हीरे-मोती लेकर आया। और उस भिक्षु के भिक्षापात्र में डालने लगा। पर जल्दी ही उसे अपनी भूल का अहसास हो गया।

भिक्षापात्र में डाले गए सारे हीरे और मोती न जाने कहाँ गायब हो गए और पात्र खाली का खाली ही रह गया।


                राजा और भिक्षा पात्र: मंत्री जल्दी से और रत्न लेकर आया और पात्र में फिर से और रत्न  डाले, वे भी भिक्षापात्र में न जाने कहाँ समां गए फिर और रत्न लाकर डाले गए। सुबह से  दोपहर हो गई, पर भिक्षापात्र खाली का खाली ही रहा। राजा को अब घबराहट होने लगी, यह तो बहुत बड़ी समस्या खड़ी हो गयी थी। राजा ने भिक्षु को वचन दिया था। राजा को अब कुछ भी समझ नहीं आ रहा था, आखिर वह क्या करे।  राजा सोच में पड़ गया आखिर यह कैसे हो सकता है की एक छोटा सा भिक्षापात्र इतने रत्नों से भी नहीं भरा? यह कैसा भिक्षापात्र है?     


                   

            संध्या हो गई। राजा भी अपनी बात पे अड़ा रहा, क्योंकि आखिर उसने इतने लोगों के सामने वचन जो दिया था। यदि वह अपनी बात पे कायम नहीं रहेगा तो वे सभी लोग राजा पर कितना हसेंगे की, राजा एक भिक्षु का भिक्षापात्र भी नहीं भर पाया।



              अंत में राजा का राजकोष खाली हो गया पर वह भिक्षापात्र नहीं भरा। अंत में राजा भिक्षु के पैरों पर गिर पड़ा और माफी मांगने लगा। राजा ने कहा, 'मैं माफी मांगता हूं, मैं यह भिक्षापात्र नहीं भर पाया बस आप यह  बता दें कि आखिर यह भिक्षापात्र क्या है? क्या यह कोई जादू है? या कुछ और है। 

               भिक्षु ने कहा, 'महाराज यह न तो कोई जादू है और न ही कोई रहस्य। मैं एक मरघट से हर-रोज निकलता था, एक रोज यह आदमी की खोपड़ी मरघट में पड़ी हुई मुझे मिल गई, उसी से मैंने यह भिक्षापात्र बनाया है। मैं खुद भी हैरान हूं, की मानव मन से बनी यह खोपड़ी कभी भरती ही नहीं।' इसके अंदर चाहे जो कुछ भर लो यह फिर खाली हो जाती है।


               महाराज मन को भरने की इच्छा तो हर व्यक्ति रखता है पर ऐसा होता नहीं है, क्योंकि हम हमेशा कुछ न कुछ चाहते ही रहते हैं जैसे धन, प्रसिद्धि, प्यार या ज्ञान पाने की लालसा। मन की यह लालसा हमें हमेशा आगे बढ़ने और सफलता हासिल करने के लिए प्रेरित करती है। मन कभी भी पूरी तरह से नहीं भरता है क्योंकि इसकी इच्छाएं अनंत हैं। इसीलिए मन को भरने की कोशिश करना बेकार है, मन की इच्छाओं की पूर्ती करने से हमें  ख़ुशी या संतुष्टि नहीं मिलती बल्कि यह हमें और अधिक लालची और असंतुष्ट बना सकता है। इसीलिए मन को भरने से अच्छा है की हम अपने मन को नियंत्रित करना सीखें।

राजा और भिक्षा पात्र (Motivational Story In Hindi) कहानी से सीख:

                         मन को भरने की कोशिश करना बेकार है, मन की इच्छाओं की पूर्ती करने से हमें  ख़ुशी या संतुष्टि नहीं मिलती बल्कि यह हमें और भीअधिक लालची और असंतुष्ट बना सकता है।

Note: The story shared here is not my original creation, I have read and heard it many times in my life and I am only presenting its Hindi version to you through my own words.

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