सांप की सवारी करने वाले मेढकों की कहानी | Frogs That Rode A Snake Story In Hindi |

Lekhadda
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सांप की सवारी करने वाले मेढकों की कहानी | Frogs

 That Rode A Snake Story In Hindi



सांप की सवारी करने वाले मेढकों की कहानी | Frogs That Rode A Snake Story In Hindi | Panchatantra Story In Hindi


 
 Frogs That Rode A Snake Story In Hindi: बहुत समय पहले की बात है, किसी पुराने जंगल में मंदविष नाम का एक अजगर रहता था। वह बहुत बूढ़ा और निर्बल था। निर्बल होने के कारण वह अपने भोजन का प्रबंध भी नहीं कर पाता था। एक दिन वह अजगर खाने की तलाश में किसी तरह सरकता हुआ एक सरोवर के किनारे पहुँचा, उस सरोवर में ढेर सारे मेंढक थे। 


                     इतने सारे मेंढकों को देखकर अजगर के मुँह में पानी आ गया परन्तु वह इतना दुर्बल था की वह खुद मेंढकों को पकड़कर नहीं खा सकता था । अतः उसने एक योजना बनाई। 


                   वह सरोवर के किनारे जाकर सुस्त सा पड़ा रहा। पहले तो उसे देखकर सारे मेंढक डर गए और सरोवर में जाकर छुप गए, पर जब अजगर बहुत देर तक ऐसे ही सुस्त पड़ा रहा और अपनी जगह से हिला भी नहीं तो यह देखकर सरोवर में रहने वाले एक मेंढक ने उससे पूछा भद्र! आप इतने सुस्त से क्यों पड़े हो?  अपने भोजन का प्रबंध क्यों नहीं करते?


                 अजगर  ने एक आह भरी और बोला  भई! तुम क्यों मुझ अभागे को व्यर्थ में परेशान कर रहे हो जाओ यहाँ से, मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो।  यह सुनकर मेंढक को यह जानने की उत्सुकता हुई कि आखिर यह अजगर ऐसा क्यों कर रहा है उसने अजगर से पूछा भद्र! ऐसी क्या बात है? कुछ हमें भी तो बताओ।


यह सुनकर अजगर बोला अगर तुम्हारा ऐसा ही आग्रह है तो सुनो। 



                “अब से कुछ समय पहले मैं देवपुर नाम के एक गाँव में रहता था। उस गाँव में गंगाधर नाम का एक ब्राह्मण भी रहता था। वह ब्राह्मण प्रकाण्ड पंडित  एवं सभी वेदों का ज्ञाता  था। एक दिन उसका बीस वर्षीय पुत्र मेरे पास से निकला। दुर्भाग्यवश अपने स्वभाव के कारण मैंने उसके पुत्र को डस लिया।”


               “पुत्र के निधन का समाचार सुनकर ब्राह्मण को मूर्च्छा आ गई। यह बात सुनकर सारे गाँववासी भी उसके घर पर एकत्रित हो गए। सब लोग उस ब्राह्मण को विभिन्न प्रकार से सांत्वना देने लगे।”


                गाँव के एक व्यक्ति ने उसे समझाया, सुनो मित्र! जैसा कि गीता में कहा गया हैए जो आया है वह तो एक दिन जाएगा ही। कोई जल्दी चला जाता हैए कोई कुछ दिन रुक जाता है। जाना तो सभी को है। यह संसार तो प्राणियों के लिए एक विश्राम स्थली है। पंचतंत्र से निर्मित यह काया एक दिन उसी में विलीन हो जाती है।

 

             “जिस  प्रकार नदियों का बहाव निरंतर आगे की ओर होता है, उसी प्रकार ये दिन और रात मनुष्य को आगे की ओर ले जाते हैं। कहा भी गया है कि मनुष्य जिस रात को अपनी माता के गर्भ में प्रविष्ट होता हैए उसी समय से वह अबाध गति से प्रतिदिन मृत्यु की ओर अग्रसर होता रहता है।”

 

            “गाँव के व्यक्ति  के ऐसे वचन सुनकर गंगाधर का मन कुछ शांत हुआ किंतु उसका गुस्सा मुझ पर ज्यों का त्यों बना रहा और उसने मुझे श्राप दिया, जाओ आज से तुम जीवन भर मेढकों की सवारी बनकर अपना जीवनयापन करोगे।”


              “उसी गंगाधर के श्राप के कारण मैं यहाँ तुम मेंढकों की सेवा करने के लिए आया हूँ, नहीं तो इस सरोवर में मेरा क्या काम।”


मेंढ़क ने जब यह बात सुनी तो बहुत खुश हुआ। उसने अपने राजा मेंढ़क को सारी बातें बताई! 


              “जब मेंढ़क राजा ने यह बात सुनी तो उसे भी बहुत जिज्ञासा हुई, और वह खुद अजगर के पास इस बात की पुष्टि करने के लिए जा पहुंचा।”


             अजगर ने जब मेंढ़क राजा को देखा तो उसने एक लंबी साँस ली और बोला आओ भद्र! अब क्या तुम भी यही जानने आये हो की मैं इस सरोवर के किनारे ऐसे क्यों पड़ा हूँ?


             इस पर मेंढ़क राजा बोला मैं इस सरोवर और मेंढकों का राजा हूँ, मुझे मेरे एक सेवक से यह ज्ञात हुआ है की आप यहाँ पर हमारी सेवा करने के लिए आयें हैं क्या यह बात सत्य है ?


इस पर अजगर बोला तुम्हारे सेवक ने तुम्हें जो कुछ भी बताया है,  वह सत्य है। 


“तुम्हें इस विषय में कोई संदेह नहीं करना चाहिए। अगर आप चाहो तो इसी समय मेरी सवारी करके देख लो।”  


              तब झिझकते हुए मेंढ़क राजा खुद अजगर के ऊपर जा बैठा। अजगर ने उसे सरोवर के किनारे पर घुमाया और दुबारा वापस लाकर उसी जगह पर छोड़ दिया।


उस दिन से मेढ़कों का राजा प्रतिदिन अजगर की गुदगुदी पीठ पर बैठकर उसकी सवारी का आनंद लेने लगा। 


            बाकी सारे मेंढक भी अब अजगर से नहीं डरते थे, वे भी अजगर की सवारी का आनंद लेते और दिनभर उसके आस-पास ही उछल-कूद करते रहते।


“एक दिन जब मेंढ़क राजा अजगर की सवारी का आनन्द ले रहा था, तब अजगर बहुत धीरे-धीरे रेंगकर उसे सवारी करा रहा था।”  


                यह देखकर मेंढ़क राजा ने कहा  मित्र! आज आपकी सवारी करने में बिल्कुल आनंद नहीं आ रहा है। क्या कारण है कि आप इतने धीरे-धीरे चल रहे हैं? 



                अजगर बोला क्या बताऊँ मित्र मैने बहुत दिनों से भोजन नहीं किया है और भोजन न मिलने के कारण मैं बहुत  कमजोर हो गया हूँ,  जिस कारण मुझसे चला भी नहीं जा रहा है। यह सुनकर मेंढ़क राजा बोला,  मित्र! मेरे रहते तुम भूखे रहो ऐसा नहीं हो सकता आज से तुम्हें भोजन की चिंता करने की कोई  भी आवश्यकता नहीं है। तुम प्रतिदिन एक-दो मेंढक खा सकते हो और अपनी भूख शांत कर सकते हो। 


                यह मेरी आज्ञा है, इसपर अजगर बोला मित्र! “मेरे ऐसा करने से सारे मेंढक मुझसे डरकर भाग जाएंगे और मैं इतना बूढ़ा और कमजोर हूँ की मेंढकों को पकड़ नहीं सकता। 


मेंढ़क राजा ने यह सुनकर कहा मित्र! इस सरोवर में ऐसा कोई नहीं है जो मेरी आज्ञा की अवहेलना करे।


                यह कहकर राजा ने सरोवर के सारे मेंढकों को यह आज्ञा दी कोई भी अजगर से डरे नहीं वह मेरी आज्ञा से प्रतिदिन दो मेढकों को अपने भोजन के लिए ग्रहण करेगा।  


               मेंढ़क राजा के सलाहकार ने उसे बहुत समझाया की वह अजगर हमें बेवकूफ बनाकर हमारा फायदा उठा रहा है।  किन्तु मेंढक राजा ने उसकी एक ना सुनी और कहा इसमें क्या बुराई है? अजगर को श्राप के कारण मेंढकों की सेवा करनी पड़ रही है, यदि वह भोजन नहीं करेगा तो भूखा मर जाएगा । अजगर की इतनी सेवा के बदले हम उसे भोजन तो दे ही सकते हैं।   


              बस फिर क्या था मेंढ़क राजा की आज्ञा मिलते ही अजगर ने मेढकों को खाना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे उसने सरोवर के सारे मेंढक चट कर दिए। जब सारा सरोवर मेंढकों से खाली हो गया तो एक दिन अजगर मेंढ़क राजा से बोला मित्र! अब तो मेरे लिए इस सरोवर में कुछ भी नहीं बचा है ,अब सारे मेढक समाप्त हो गए हैं।


                यह सुनकर मेंढ़क राजा गुस्से में बोला, तो मैं क्या करूँ? जाओ किसी और जगह जाकर अब अपना भोजन ढूंढ़ों अजगर बोला वह तो ठीक है, “मैं तो यहाँ से चला जाऊँगा पर मुझे इस समय का भोजन भी तो करना है ना ?” यह कहकर उसने मेंढ़क राजा को अपनी जीभ से पकड़कर अपने पेट में भर लिया और इस तरह मेढकों का पूरा वंश समाप्त हो गया। 


कहानी की सीख 

इस कहानी से हमें दो तरह से सीख मिलती है :-


  1. अपना कार्य सिद्ध करने के लिए शत्रु को अपने कंधे पर भी बैठाना पड़  जाए, तो इसमें कोई हानि नहीं है।
  2. हमें कभी भी अपने शत्रु की किसी भी बात का जल्दी से भरोसा नहीं करना चाहिए। इससे खुद का और अपने लोगों का नुकसान होना  निश्चित है।”


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