धूर्त काजी और शेख़चिल्ली | The Cunning Judge and Sheikh Chilli
धूर्त काजी और शेख़चिल्ली कहानी: बहुत समय पहले की बात है एक शहर में एक बहुत ही धूर्त काजी रहता था। वह अपने नौकरों पर बहुत जुल्म किया करता था। वह अपने घर में नौकर रखने से पहले उस के सामने यह शर्त रखता,“कि यदि तुम खुद यहाँ से खुद नौकरी छोड़कर गए तो तुम्हारे नाक और कान दोनों काट दिए जाएंगे और यदि मैं खुद तुम्हें नौकरी से हटाउं तो तुम मेरे नाक-कान काट लेना”। धूर्त काजी पहले भी अपने कई नौकरों के साथ ऐसा कर चुका था।
उन्हीं दिनों शेखचिल्ली भी नौकरी की खोज कर रहा था। नौकरी की तलाश में वह कई दिनों तक इधर-उधर भटकता रहा। एक दिन भटकते-भटकते रास्ते में उसे उसका मित्र मिला। उसके मित्र के नाक-कान कटे हुए थे। शेखचिल्ली उसके नाक-कान कटे देखकर हैरत में पड़ गया, और अपने मित्र से उसका कारण पूछा तो उसके मित्र ने उसे धूर्त काजी और उसकी शर्त के बारे में सबकुछ बता दिया।
धूर्त काजी और शेख़चिल्ली कहानी: The Cunning Judge and Sheikh Chilli
“अपने मित्र से काजी और उसकी शर्त के बारे में सुनकर शेखचिल्ली ने ये फैसला किया की वह धूर्त काजी की अक्ल ठिकाने जरूर लगाएगा। उसके मित्र ने उसे बहुत समझाया पर शेखचिल्ली नहीं माना और अगली सुबह काजी के घर पर पहुँच गया।”
काजी ने शेखचिल्ली के सामने भी वही शर्त रखी जो वह सबके सामने रखता था। शेखचिल्ली ने उसकी शर्त को स्वीकार कर लिया और काजी के घर पर नौकरी करने के लिए तैयार हो गया। काजी ने उससे कहा अब तुम नौकरी करने के लिए तैयार हो तो अपना काम भी समझ लो।
“काजी ने कहा तुम्हें बीस बीघा खेत जोतना होगा, चूल्हा जलाने के लिए लकड़ियाँ लानी होंगी और रात के भोजन के लिए शिकार मारकर लाना होगा। ये सारे काम दोपहर तक हो जाने चाहिए। जब तुम घर लोटोगे तब तुम्हें खाने के लिए रोटी और दही की मटकी दी जाएगी लेकिन याद रहे, रोटी तुम्हें ऐसे खानी है कि रोटी छोटी न हो और दही को ऐसे पीना है की मटकी का मुँह न खुले।”
“शेखचिल्ली सारे काम को समझने के बाद हल और बैल लेकर खेत जोतने चला गया। उसके पीछे-पीछे काजी की कुतिया भी चल पड़ी। खेत में जाकर उसने मेड़ के पास-पास गड्ढे खोद दिए और चूल्हा जलाने के लिए हल को तोड़कर उसकी लकड़ियां इकट्ठी कर लीं। रात के खाने के लिए शिकार के रूप में उसने काजी की कुतिया को ही मार डाला। ये सारे काम करके वह दोपहर से पहले ही घर पर लौट आया। उसे घर आया देखकर काजी और उसकी बेगम दोनों ही आश्चर्यचकित रह गए।”
धूर्त काजी और शेख़चिल्ली कहानी:
काजी ने शेखचिल्ली से जब जल्दी आने का कारण पूछा तो शेखचिल्ली ने काजी को सब कुछ बता दिया। इस पर काजी को बहुत गुस्सा आया और वह क्रोधित होकर बोला,“चल निकल मेरे घर से, जा मैं तुझे नौकरी से निकालता हूँ।” इस पर शेखचिल्ली हँसा और बोला, “ठीक है, मैं यहाँ से चला जाऊँगा पर उससे पहले शर्त के मुताबिक लाइए अपने नाक-कान।”
“काजी डर के मारे सहम गया और उसका इतना नुकसान होने के बाद भी वह खून का घूंट पीकर रह गया। वह शेखचिल्ली से बोला अरे तुम बेकार में नाराज हो रहे हो मैं तुम्हें नौकरी से नहीं निकाल रहा हूँ।”
“अब शर्त के अनुसार शेखचिल्ली को भोजन के लिए काजी की बेगम ने रोटी और दही की मटकी लाकर दी। शेखचिल्ली ने रोटी-मटकी ले ली। उसे शर्त याद थी! इसीलिए उसने रोटी को बीच से खाना शुरू कर दिया और मटकी के नीचे छेद करके सारा दही भी पी गया। इस तरह न रोटी छोटी हुई और न ही मटकी का मुंह खुला।”
यह सब देखकर काजी बड़ा विचलित हुआ। “उसने सोचा कि यह तो कोई पहुंचा हुआ शैतान लगता है, लगता है यह मेरे नाक-कान लेकर ही जाएगा।”
काजी शेखचिल्ली के कदमों में गिर गया और गिड़गिड़ाने लगा, “शेखचिल्ली ! मुझे माफ कर! तू यहां से चला जा, मेरे नाक-कान की जगह तू जितना चाहे उतना धन ले ले, क्योंकि नाक-कान के बिना मेरी इज्जत चली जायेगी।”
इस पर शेखचिल्ली बोला,“ओह अच्छा तुम्हारे नाक-कान काटने पर तुम्हारी इज्जत चली जाएगी और तुमने जिन लोगों के नाक-कान काटे उनका क्या? क्या उनकी कोई इज्जत नहीं थी?”
काजी बोला“भाई!, मैं बहुत शर्मिंदा हूं।”
शेखचिल्ली बोला“अच्छा, एक काम करो कि मुझे सालभर की तनख्वाह दो और वादा करो कि भविष्य में अब और किसी के साथ ऐसा बर्ताव नहीं करोगे।”
“काजी ने शेखचिल्ली को एक साल का वेतन देकर यह वचन दिया की अब वह किसी के साथ बुरा व्यवहार नहीं करेगा।”
“इस तरह से शेखचिल्ली ने धूर्त काजी को सबक सिखाया।”
धूर्त काजी और शेख़चिल्ली (The Cunning Judge and Sheikh Chilli) कहानी की सीख:
“दूसरों के दुःख में व्यक्ति संवेदना तो व्यक्त करता है, लेकिन उसे पीड़ा का अनुभव नहीं होता। पीड़ा तो उसे तभी होती है जब खुद पर गुजरती है।”