नेवला और ब्राह्मण | The Brahman and the Mongoose | Panchatantra Story In Hindi

Lekhadda
0

 नेवला और ब्राह्मण 


The Brahman and The Mongoose 


                    उज्जैन  नगर में  सदाशिव नाम का एक ब्राह्मण रहता था। वह पूजा-पाठ करके अपनी जीविका चलाता था। जिन दिनों उसकी पत्नी ने अपने पुत्र को जन्म दिया, उन्हीं दिनों जब वह पूजा पाठ करके एक शाम घर लौट रहा था रास्ते उसको एक नेवले का बच्चा मिला। ब्राह्मण उसको अपने साथ अपने घर ले आया। ब्राह्मण की पत्नी ने उस नेवले के बच्चे को अपने बच्चे के समान पाला-पोसा।

The Brahman and the Mongoose | Panchatantra Story In Hindi


एक दिन ब्राह्मण अपने घर पर ही था आज उसको किसी कर्म-काण्ड में नहीं जाना था, इसलिए उसकी पत्नी उससे बोली आज आप घर पर हो तो क्या मैं स्नान करने के लिए सरोवर चली जाऊँ? बहुत दिन बीत गए हैं सरोवर गए हुए सरोवर पर मैं कपड़े भी धो लुँगी। इसपर ब्राह्मण ने अपनी सहमति दे दी। 

तत्पश्चात ब्राह्मणी उठी और बोली मैं स्नान करने जा रही हूँ ,आप बच्चे की देखभाल करना। ऐसा कहकर वह सरोवर में स्नान करने चली गयी। उस समय ब्राह्मण का पुत्र सो रहा था, तथा नेवला उसके पुत्र के समीप ही बैठा था ब्राम्हण भी अपने पुत्र के पास बैठकर ग्रन्थ पढ़ने लगा, अभी उसको ग्रन्थ पढ़ते हुए कुछ ही पल हुये होंगे तभी राजा के यहाँ से उसको नामकरण संस्कार के लिए बुलावा आ गया।
सदाशिव यह देखकर सोच में पड़ गया, यदि मैं अभी महल जाता हूँ तो बच्चे की देखरेख कौन करेगा, और यदि मैं नहीं जाता हूँ तो राजा  किसी दूसरे ब्राह्मण को बुलवाकर नामकरण संस्कार पूरा करा लेगा। 

बहुत सोच-विचार करने के बाद उसने सोचा की मेरा पुत्र तो अभी सो रहा है, पत्नी को स्नान के लिए गए हुए काफी समय हो गया है वह भी आने ही वाली होगी, उसे राजा के यहाँ चले जाना चाहिए। कोई दिक्कत नहीं होगी, और ये नेवला भी तो है यहाँ पर, मेरी पत्नी के वापस आने तक यह मेरे पुत्र की रक्षा कर लेगा।     

फिर उसने ऐसा ही किया। अपने पुत्र को वह नेवले के पास सोता हुआ छोड़कर राजदरबार चला गया।  

ब्राह्मण के जाने के कुछ ही देर बाद न जाने कहाँ से एक काला साँप आ पहुँचा और साँप फन उठाकर इधर-उधर देखने लगा। तभी नेवले की निगाह उस साँप पर पड़ी । वह बिजली की तरह उस  साँप पर झपट पड़ा और साँप को मार कर उसके टुकड़े-टुकड़े कर डाले ।

संयोग की बात है कि जब ब्राह्मणी सरोवर से स्नान करके लौटी, ठीक उसी समय सदाशिव भी राजा के दरबार से वापस लौट आया। नेवला ब्राह्मण को आया देख, उसके समीप जा पहुँचा और अपनी स्वामिभक्ति को दिखाने  के लिए उछलने-कूदने लगा। सदाशिव और उसकी पत्नी ने देखा कि नेवले का मुँह खून से सना हुआ है  नेवले का रक्त से भरा मुँह देखकर  उन दोनों को यह लगा की इस दुष्ट नेवले ने हमारे बच्चे को मार डाला है। 

ऐसा सोचकर सदाशिव और उसकी पत्नी  गुस्से और शोक से भर गए। ब्राह्मणी तो दहाड़े मारकर रोने लगी। सदाशिव को यह सब बर्दाश्त नहीं हुआ उसने न आव देखा न ताव, पास में ही पड़ा एक बड़ा सा पत्थर उठाया और बिना कुछ सोचे-समझे ही उस निर्दोष नेवले को पत्थर से कुचलकर मार डाला।

नेवले को मारने के बाद सदाशिव जल्दी से भागकर अपने बच्चे के पास पहुँचा तो देखा कि बच्चा तो आनंदपूर्वक अपने पालने में खेल रहा है, परंतु बच्चे के पास एक मरे हुए काले साँप के कई छोटे-छोटे टुकड़े पड़े हुए हैं।

यह देखकर सदाशिव को  सारी बात समझ में आ गई। अब तो सदाशिव उस निर्दोष नेवले को मारने का बहुत अफसोस करने लगा। पर अब हो भी क्या कर सकता था। सदाशिव ने खुद ही अपना नुक्सान कर डाला था। वह बाहर आया और मरे हुए नेवले के पास बैठकर पश्चाताप करने लगा।'


कहानी की सीख:

 “हमें बिना सोचे-विचारे कोई भी काम नहीं करना चाहिए। अगर मनुष्य काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि  का परित्याग कर दे तो वह व्यक्ति किसी राजा के समान सुखी हो जाता है।"


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Ok, Go it!
To Top