Motivational Story | दृढ़ निश्चय का फल | Fruit of Determination
इस Motivational Story में हम यह देखेंगे की कैसे एक गरीब धोबी अपने दृढ निश्चय से एक राजा से उसका आधा राज्य हासिल कर लेता है |
यह Motivational Story एक धोबी की कहानी है जिसका नाम है मटरू !
मटरू धोबी अपने शहर का बहुत मशहूर धोबी था। वह गंगा नदी के तट पर ही अपनी बिरादरी वालों के साथ रहता था। उसका काम सुबह-सुबह गंगा नदी के किनारे बने घाट पर अपने गधे के साथ आकर कपड़े धोने का था। कपड़े धोकर उनको अच्छे से सुखा कर और स्त्री कर के मटरू उन कपड़ों को अपने गधे पर लाद कर शहर के उन धनवान लोगों के घरों तक वापस पहुंचाता था जिन घरों से वह उन्हें धोने के लिए लेकर आया करता था। यही उसका प्रतिदिन का काम था और वह अपने इस काम को अपनी पूरी निष्ठा और दृढ़ निश्चय से किया करता था। वह अपने काम से कभी भी जी नही चुराता था।
एक दिन मटरू सुबह–सवेरे अपने गधे पर लाद कर कपड़ों को धोने के लिए तट की ओर लेकर जा रहा था कि तभी अचानक उसकी नजर ज़मीन पर पड़े चांदी की एक मोहर पर पड़ी। और मटरू ने जल्दी से उस मोहर को उठा लिया और खुद से बोला
"अरे वाह! मटरू आज सुबह-सुबह ही चांदी की एक मोहर हाथ लग गई है। हे मां लक्ष्मी ! आज तो तुमने मुझ गरीब पर अपनी बड़ी कृपा की। "
मटरू की खुशी का कोई ठिकाना ही नहीं रहा। लेकिन अगले ही क्षण वह सोच में डूब गया। अब उसके सामने समस्या यह थी कि उस चांदी की मोहर को रखे कहां? उसकी झोपड़ी तो मोहर के लिए सुरक्षित जगह नहीं थी क्योंकि उसमें दरवाजा नहीं था। बस एक पर्दा सा था जो द्वार पर लटका रहता था।
"हे प्रभु! अब मैं इस चांदी की मोहर को कहां रखूं जो यह सुरक्षित रह सके। इस मोहर को तो मैं किसी खास मौके पर ही खर्च करना चाहता हूं, मगर तब तक इसकी सार-संभाल कैसे करूं?" मटरू चिंता में डूब गया।
मटरू अभी तक कुंवारा ही था उसकी शादी भी नहीं हुई थी। अचानक उसके मन में विचार आया क्यों न मैं स्वयं ही इस मोहर को कहीं छिपाकर रख दूं और अपनी शादी के अवसर पर इसे खर्च करुं। शादी के बाद इससे अपनी पत्नी को श्रृंगार का सामान लाकर दूंगा तो वह बहुत खुश होगी। अब यह दृढ़ निश्चय मटरू ने अपने मन में कर लिया कि वह इस चांदी की एक मोहर का क्या करेगा, लेकिन समस्या जस की तस थी कि इस मोहर को कहां रखा जाए। जहां ये सुरक्षित रह सके।
अचानक उसके मन में ख्याल आया कि क्यों ना मैं इस मोहर को जंगल में स्थित पुराने तलाब के पास वाले खंडहर में जाकर कहीं छुपा दूं। क्यूंकि वहां तो कोई आता-जाता भी नहीं है। यही सोचकर मटरू पुराने तालाब वाले खंडहर की ओर चल दिया।
पुराना तालाब शहर से काफी दूर जंगल में था और वहां आबादी भी नहीं थी। मटरू पुराने तालाब वाले खंडहर के पास जा पहुंचा, वहां पहुंचकर उसने देखा एक जगह पर खंडहर की दीवार में पीपल का एक वृक्ष उगा हुआ है। मटरू ने उसी पीपल के वृक्ष के पास वाली दीवार में अपनी चांदी की मोहर को छुपा दिया और दीवार पर कुछ निशान बना दिया जिससे वह भविष्य में जब भी अपनी मोहर को लेने के लिए आए तो वह उस जगह को आसानी से पहचाना सकें जहां पर उसने अपनी मोहर को छुपाया है और अपनी मोहर को वापस से निकाल कर ले जा सके।
"यह सब करने के बाद मटरू खुद से बोला हां, अब सब ठीक है। यहां मेरी मोहर कोई खतरा नहीं है वह पूरी तरह सुरक्षित है- मुझे न तो अब मोहर की चोरी का डर और न ही आंधी-तूफान का खतरा।"
मटरू चांदी की एक मोहर पाकर स्वयं को काफी अमीर समझ रहा था। अब मटरू को अपनी शादी का इंतजार था कि कब उसकी शादी हो और कब वह उस मोहर को निकालकर अपनी धर्म पत्नी के ऊपर खर्च करे।
अचानक मटरू की आंखों के सामने उसकी बिरादरी के ही छगन काका की बेटी रूपा का चेहरा थिरकने लगा। वह रूपा को मन-ही-मन बचपन से चाहता था और उससे शादी भी करना चाहता था। मगर छगन काका से बात करने की उसकी हिम्मत नहीं होती थी।
उसने सोचा कि क्यों ना अपने दूर के चाचा रामप्रसाद के ज़रिए रूपा से खुद की शादी की बात आगे बढ़ाई जाए। यह विचार मन में आते ही मटरू अगले दिन सुबह–सुबह अपने गधे पर सवार होकर रामप्रसाद चाचा के घर की ओर चल दिया।
रामप्रसाद चाचा के घर पहुंच कर मटरू ने अपने गधे को एक पेड़ से बांधा और खुद सीधा रामप्रसाद चाचा के घर में घुस गया और बोला "राम राम चाचा जी ।" रामप्रसाद मटरू को देखकर बोले "अरे मटरू ! भई, आज सुबह-सुबह यहां कैसे? काम-धंधे पर नहीं गए क्या ?"
मटरू बोला "क्या बताऊं चाचा जी! घर के चौका बर्तन से फुर्सत मिले तो काम-धंधे की बात सोचूं । अब तो मन में आता है कि तुम्हारा कहा मान ही लूं। चौका बर्तन से फुर्सत मिल जाएगी तो मन लगाकर काम भी करूंगा।"
"मेरी बात... ।" रामप्रसाद चौंका "मेरी कौन-सी बात?"
"अरे वही, शादी की बात चाचा जी। तुमने कहा नहीं था कि अब तुझे शादी कर लेनी चाहिए।"
"अच्छा-अच्छा शादी कि बात। अगर तू हां करें तो छगन काका से आज ही बात करूं। वो कई बार मुझसे कह चुके हैं कि रामप्रसाद कोई अच्छा और मेहनती लड़का हो तो बताओ रूपा बिटिया की शादी के लिए।"
मटरू बोला "अरे तो मैं कौन-सा कम मेहनती हूं चाचा जी आप बात पक्की करवा दो तो मैं चट मंगनी और पट ब्याह कर लूं।"
और फिर रामप्रसाद चाचा ने छगन काका से बात करके उसकी बेटी रूपा की शादी की बात मटरू से पक्की करवा दी। कुछ ही दिनों बाद मटरू और रूपा दोनों की शादी भी हो गई।
शादी करके रूपा मटरू की झोपड़ी में आ गई और उसकी घर गृहस्थी को अच्छे से संभाल लिया।
दोनों पति-पत्नी खुशी-खुशी अपने दिन गुजारने लगे। शादी के बाद मटरू रूपा के प्यार में ऐसा खो गया कि उसे चांदी की उस मोहर का ध्यान ही न रहा। मटरू तो बस काम पर जाता और जो दो-चार पैसे कमाकर लाता, वह रूपा के हाथ पर रख देता ।
सावन के महीने में गंगा तट के किनारे बने शिव मंदिर परिसर में हर साल मेला लगा करता था। एक दिन रूपा ने मटरू के गले में बाहें डालकर प्यार से कहा- "सुनो जी ! क्या मुझे मेला घुमाने नहीं ले चलोगे?"
यह सुनकर मटरू चुप चाप उठा और घर से बाहर आ गया। वह चिंता में डूब गया कि आखिर रूपा को मेला घुमाने के लिए पैसे कहां से आएंगे। अचानक मटरू खुशी से उछल पड़ा।
एकाएक उसे उस चांदी की उस मोहर की याद आई जिसे शादी से कुछ ही दिन पहले वह पुराने तालाब के पास वाले खंडहर की दीवार में छिपा आया था। उस मोहर को पाकर ही तो उसके मन में शादी का विचार आया था लेकिन शादी के बाद गृहस्थी के चक्कर में वह उस मोहर को भूल ही गया था।
मटरू तेजी से दौड़ कर अपनी झोपड़ी में गया और रूपा को गोद में उठाकर खुशी से नाचने लगा।
रूपा बोलीं "अरे...रे...यह क्या करते हो। छोड़ो मुझे। अभी तो मेला जाने के नाम पर तुम्हारी नानी मर गई थीं और अब ऐसे खुश हो रहे हो जैसे तुम्हारे हाथ कोई खजाना लग गया हो।"
मटरू बोला " खजाना ही हाथ लग गया, समझ लो।" कहते हुए उसने रूपा को गोद से नीचे उतार दिया और चांदी के मोहर वाली पूरी बात बता दी।
रूपा बोलीं " अरे वाह । चांदी की एक मोहर से तो हम काफी चीजें खरीद सकते हैं । "देखो जी! मैं तो अपने कानों के झुमके, हाथों के कंगन और एक जोड़ी पायल जरूर खरीदूंगी।"
मटरू बोला "हां हां, जरूर खरीदना। अब मैं जल्दी से जाकर वह मोहर निकाल लाता हूं। तुम तैयार हो जाओ, हम आज ही मेला देखने चलेंगे।"
उसके बाद मटरू पुराने तालाब के पास वाले खंडहर से मोहर निकालने चल दिया। उस मोहर को मटरू अपने लिए बड़ा भाग्यशाली समझ रहा था। उसी की बदौलत उसकी शादी रूपा से हुई थी। उसके लिए तो सारी दुनिया की दौलत एक तरफ और वह मोहर एक तरफ थी।
मटरू तेजी से पुराने तालाब की ओर भागा जा रहा था। वह जिस पगडंडी पर भागा जा रहा था, वह जंगल में स्थित पुराने तालाब को जाने वाला एक नजदीकी रस्ता था जो राजमहल के पास से होकर गुजरता था।
जिस समय मटरू पुराने तालाब की ओर भागा जा रहा था, उसी समय उस राज्य के महाराज अपने राजमहल की छत पर खड़े अपने मंत्रियों से मंत्रणा कर रहे थे। अचानक उनकी नजर मटरू पर पड़ी। राजा यह देखकर हैरान हुए कि पसीने से तर-बतर यह नौजवान भरी दोपहरी में कहां भागा जा रहा है- वह भी जंगल वाले रास्ते पर।
महाराज अपने मंत्री से बोला।
"मंत्रीजी !"
"आप उस नौजवान को देख रहे हो जो भरी दोपहर में पसीने से तर-बतर जंगल की ओर भागा जा रहा है।"
मंत्री बोले!"देख रहा हूं महाराज!"
महाराज मंत्री से फिर बोले
"इसे फौरन पकड़वाकर हमारे सामने पेश कीजिए। जंगल की ओर भागकर जाने का इसका अवश्य ही कोई खास मकसद है। हम जानना चाहते हैं कि यह बदहवास-सा क्यों और कहां भागा जा रहा है। आखिरकार अपनी प्रजा के सुख-दुख का ख्याल रखना हमारा कर्तव्य है । "
"जो आज्ञा महाराज।" मंत्री बोले
मंत्री ने तुरंत सिपाहियों को आदेश दिया। कुछ ही देर बाद सिपाहियों ने मटरू को पकड़कर महाराज के सामने पेश कर दिया। मटरू डरा हुआ हाथ जोड़े राजा के सामने खड़ा था।
राजा बोला
"नौजवान! तुम कौन हो और इस प्रकार चिलचिलाती धूप में बेतहाशा कहां भागे जा रहे थे? क्या तुमने कोई अपराध किया है? या तुम किसी मुसीबत में हो जो है हमें सब सच–सच बता दो।"
मटरू बोला
"महाराज! मेरा नाम मटरू धोबी है। मैं एक बड़े ही आवश्यक कार्य से जा रहा था।"
राजा ने मटरू से पूछा
"वह आवश्यक कार्य क्या है जिसके आगे तुम्हें धूप-छांव की भी परवाह नहीं है।"
मटरू ने राजा को जवाब दिया
"महाराज! दरअसल बात यह है कि पुराने तालाब के पास वाले खंडहर की दीवार में मैंने अपना धन छिपा रखा है। आज अपनी पत्नी को मेला घुमाने के लिए मैं अपना वही धन निकालने जा रहा हूं।"
"धन?" महाराज चौंके।
"जी महाराज!"
"तुम्हारे पास कितना धन है जो तुम इस कदर भागे जा रहे हो?" महाराज ने हैरानी से पूछा- "क्या दस-बीस हजार मोहरें है?"
"नहीं महाराज!"
"हजार-दो हजार ।" "इतना भी नहीं महाराज!" मटरू बोला- "मेरा धन तो सिर्फ चांदी की एक मोहर है।"
"क्या?" महाराज पुन: चौंके "केवल चांदी की एक मोहर ? " "जी महाराज ! वही मेरा खजाना है जिसे मैंने काफी दिनों से संजोकर रखा हुआ है।"
महाराज हैरानी से मटरू का चेहरा देखे जा रहे थे। मटरू के भोलेपन को देखकर उन्हें उस पर तरस आने लगा था।
जबकि मटरू कह रहा था- "उस एक मोहर से ही मैं अपनी पत्नी को मेला दिखाकर खुश कर दूंगा। मेरी पत्नी के सिवा मेरा इस दुनिया में कोई नहीं है महाराज !"
"यदि ऐसी बात है तो हम तुम्हें अपने खजाने से चांदी की दस मोहरें दिला देते हैं । उसे लेकर तुम घर जाओ और अपनी पत्नी के साथ मेला देख आओ। एक मोहर के लिए इस चिलचिलाती धूप में दौड़ने से क्या फायदा?"
"महाराज! आज आप मुझ पर मेहरबानी करके मुझे मोहरें दें रहे हैं, यह तो मेरे लिए बड़ी खुशी की बात है। मगर फिर भी मैं अपनी वह मोहर लेने अवश्य जाऊंगा। वह मोहर मेरे लिए बड़ी भाग्यशाली हैं।"
"देखो मटरू ! इस तपती दोपहरी में जंगल की ओर जाने का विचार त्याग दो। तुम हमारी प्रजा हो और हम राजा । अपनी प्रजा के सुख-दुख का ख्याल रखना हमारा कर्तव्य है। यदि तुम्हें चांदी की दस मोहरें कम लगती हैं तो हम तुम्हें सोने की दो मोहरें दिलवा देते हैं।
मटरू "आप हमारे अन्नदाता हैं महाराज! आप कृपा करके जो भी देंगे, मैं उसे सहर्ष स्वीकार कर लूंगा-किंतु...।"
"किंतु क्या ?"
"मैं अपनी वह मोहर लेने जंगल अवश्य जाऊंगा।" "यदि हम तुम्हें सोने की दस मोहरें दे तो क्या तब भी... ?" "हां महाराज! तब भी।"
महाराज मंत्री से बोले
"देखो अजीब बेवकूफ और जिद्दी किस्म का नौजवान है। जो सोने की दस मोहरें लेकर भी अपनी चांदी की एक मोहर छोड़ने को तैयार नहीं। आखिर ऐसी क्या विशेषता है उस मोहर में।" सोचते हुए महाराज ने पूछा- "अरे मटरू ! तुम्हारी उस मोहर की क्या विशेषता है जो सोने की दस मोहरों के बदले भी तुम उसका मोह छोड़ने को तैयार नहीं हो।"
मटरू बोला
"महाराज मैं बता चुका हूं कि मेरे लिए वह मोहर बहुत ही भाग्यशाली है। यदि मुझे वह मोहर ना मिली होती तो मेरी शादी भी नहीं हुई होती। यदि मैं शादी न करता तो मुझे रूपा जैसी सुंदर और सुशील पत्नी भी नहीं मिली होती । इसलिए महाराज! वह मोहर मेरे लिए बहुत कीमती है।"
महाराज ने सोचा- 'यह मटरू धुन का तो पक्का है, मगर इमानदार है या लालची, इसके लिए इसकी परीक्षा लेनी चाहिए। अतः महाराज बोले- "मटरू ! यदि हम तुम्हें हजार सोने की मोहरें दें, तो क्या तुम क्या तब भी उस एक चांदी की मोहर को लेने जाओगे। ?"
"जी महाराज! उस मोहर को तो मैं अवश्य लेने जाऊंगा। क्योंकि वह मोहर मैंने अपनी पत्नी पर ही खर्च करने का दृढ़ निश्चय लेकर छुपाया था। अब उसी मोहर से मैं उसे मेला घुमाऊंगा।"
राजा बोले"मगर जब हम तुम्हें उस मोहर से हजार गुना अधिक धन दे रहे हैं, तो तुम उस एक मोहर का लालच त्याग क्यों नहीं देते?"
मटरू बोला !" क्षमा करें महाराज! यदि मैं अधिक धन के लालच में अपनी उस मोहर का मोह छोड़ दूंगा, तो जीवन भर मेरी आत्मा पर एक बोझ सा बना रहेगा।"
कहते हैं तीन हठ बहुत बुरी होती हैं- राजहठ, बालहठ और योगहठ |
जहाँ मटरू अपने बालहठ पर अडिग था कि पत्नी को उसी चांदी की मोहर से मेला दिखाऊंगा, वहीं महाराज के मन में भी राजहठ की भावना उत्पन्न हो गई थी कि चाहे जो भी हो, चाहे कितनी भी भारी कीमत क्यों न चुकानी पड़े, इस मटरू को वह मोहर लेने नहीं जाने दूंगा। यह सोचकर वह बोले- "देखो मटरू ! यह हमारी हठ है कि हम तुम्हें वह मोहर लेने नहीं जाने देंगे। इसके बदले हमें भले ही कितनी भी भारी कीमत क्यों ना चुकानी पड़े। उस मोहर के बदले, हम तुम्हें मुंहमांगी दौलत देने को तैयार हैं।"
मटरू बोला! "दौलत इंसान की बुद्धि भ्रष्ट कर देती है महाराज! मैं तो मेहनतकश इंसान हूं, हम लोगों को तो पेट भरने लायक धन मिल जाए, वही बहुत है। आपकी दी गई भारी दौलत भी मुझे वो खुशी नहीं दे - सकती, जो खुशी मुझे उस एक मोहर को पाकर मिलेंगी।"
महाराज बोले! "हम तुम्हारे विचार जानकर बहुत खुश हुए मटरू। तुम लालची नहीं हो तुम जैसे नौजवान जिस राज्य में हों, वह राज्य अवश्य ही उन्नति करता है। हम खुश होकर तुम्हें अपने राज्य का आधा भाग इनाम में देते हैं। मगर अब भी हमारी वही शर्त है कि तुम वह मोहर लेने नहीं जाओगे।"
"ओह!"
मटरू समझ गया कि महाराज अब जिद पर अड़ गए हैं। यदि उसने उस मोहर को लाने की जिद नहीं छोड़ी तो उसे इनाम के बदले महाराज के द्वारा दण्ड भी दिया जा सकता है। अतः अब तो उसकी भलाई इसी में है कि कोई ऐसी युक्ति लड़ानी चाहिए कि महाराज का कोप भाजन भी न बनना पड़े और वह मोहर भी उसे मिल जाए। अतः मटरू बोला- "महाराज! आपकी आज्ञा सिर माथे पर, किंतु आप मुझे राज्य का वही हिस्सा दें जो मैं चाहता हूं।"
महाराज बोले "शाबाश! यह हुई न कोई बात। प्रजा को सदा अपने राजा की आज्ञा का पालन करना ही चाहिए। बोलो, तुम्हें हमारे राज्य का कौन-सा हिस्सा चाहिए। हम वचन देते हैं, तुम्हें वही हिस्सा दिया जाएगा।"
मटरू बोला ! "मुझे राज्य का पश्चिमी हिस्सा चाहिए महाराज ! "
महाराज बोले "ओह मटरू ! तुम सचमुच बहुत बुद्धिमान हो। अपने बुद्धिबल से तुमने हमारा आदेश मानकर हमें भी संतुष्ट कर दिया और अपनी वह मोहर भी हासिल कर ली। क्योंकि राज्य के पश्चिमी हिस्से में ही वह पुराना तलाब और खंडहर है जिसमें तुमने अपनी एक मोहर को छुपा रखा है। तुम बुद्धिमान ही नहीं, दृढ़ निश्चयी भी हो। तुम जैसे नौजवान सदैव उन्नति को प्राप्त करते हैं। हमें गर्व है कि तुम जैसा होनहार हमारे राज्य में पैदा हुआ।"
मटरू बोला "और वह भाग्यशाली मोहर भी महाराज! जिसके कारण मैंने आपकी खुशी से आपके राज्य का आधा हिस्सा भी पा लिया। अब आप ही बताएं कि मैं उस भाग्यशाली मोहर का मोह कैसे छोड़ सकता हूं।"
महाराज मटरू के दृढ़ निश्चय और बुद्धिमता के समक्ष नतमस्तक हो गए। उसी दिन से मटरू को राज्य का आधा हिस्सा देकर वहां का राजा बना दिया गया। राजा बनते ही मटरू ने सबसे पहले पुराने तालाब के पास वाले खंडहर की दीवार से अपनी वह मोहर हासिल की और उसे चुमकर माथे से लगाकर बोला- "तुम बहुत शुभ हो। तुम्हारे कारण ही मेरे नसीब जाग गए! यदि तुम मुझे न मिलती तो न सुंदर और सुशील पत्नी मिलती और न ही यह राज्य।"
Motivational Story की प्रेरक बातें-
Motivational Story से हमें यह सीख मिलती है - धुन के पक्के और दृढ़ निश्चय मनुष्य उम्मीद से अधिक पा लेते हैं, लेकिन प्राप्त किया जाने वाला लक्ष्य शुभ एवं निस्वार्थ हो। दृढ़ निश्चय एक ऐसी शक्ति है। जिसका कोई तोड़ नहीं है।
Note: The story shared here is not my original creation, I have read and heard it many times in my life and I am only presenting its Hindi version to you through my own words.
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