आलसी राम | Motivational Story In Hindi

Lekhadda
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"आलसी राम”


                     बहुत समय पहले की बात है। एक राज्य के बाहर पड़ने वाले जंगल में बहुत से स्वादिष्ट फलों के पेड़ थे, उसी जंगल में एक अमरफल का भी पेड़ था। उस पेड़ का अमरफल बहुत ही स्वादिष्ट था, जिसकी वजह से एक व्यक्ति ने उस पेड़ के नीचे अपना डेरा जमा लिया था। वह व्यक्ति हमेशा उसी पेड़ के नीचे पड़ा रहता था। वह व्यक्ति इतना आलसी था की वो केवल उन्हीं फलों को खाता था जो उसके ऊपर गिरते थे, वो फल उठाने के लिए भी मेहनत नहीं करना चाहता था।जंगल से गुजरने वाले लोगों उसे अक्सर ही उसी एक पेड़ के नीचे पड़ा देखा करते थे। जिसकी वजह से उन लोगों ने उसका नाम ही "आलसी राम”रख दिया था।




Aalsi Ram




                   वह सारा दिन उसी अमरफल के पेड़ के नीचे लेटा रहता और प्रतीक्षा करता, कि कब फल स्वयं पेड़ से गिरकर उसकी पहुंच में आ जाएं। सब लोग उसे ऐसा करते देख धिक्कारते थे पर वह कभी भी किसी की परवाह नहीं करता था। कभी–कभार तो वहां से गुजरने वाले लोग उसे पत्थर भी मारते, लेकिन वह इतना आलसी था कि वह अपनी रक्षा करने के लिए भी अपनी जगह से नहीं हिलता था। जिसकी वजह से उसके आस–पास फलों के आलावा पत्थरों का भी ढेर लग गया था।


                  एक दिन भयंकर आंधी चली जिसकी वजह से बहुत अमरफल टूटकर पास बहने वाली नदी में गिर गए। और नदी के बहाव के साथ बहकर एक गांव के किनारे इक्कठे हो गए, जहां उन सभी फलों को गांव की एक छोटी बच्ची ने बीन कर रख लिए। आंधी की वजह से लगभग पूरे राज्य में ही तबाही हुई थी, जिसकी वजह से राज्य के लोगों का काफी नुकसान हुआ था।


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                  उसी नुकसान का अनुमान लगाने के लिए राजा, राजकुमारी और सेनापति राज्य में घूम रहे थे। उसी समय एक छोटी बच्ची अपने साथ एक अमरफल ले कर राजकुमारी के पास आई और उसने वह अमरफल राजकुमारी को खाने के लिए कहा बच्ची के किए आग्रह को राजकुमारी टाल न सकी इस लिए उसने वह फल खा लिया। राजकुमारी ने जैसे ही उस फल को चखा तो उसे उस फल का स्वाद बहुत ज्यादा पसंद आया। राजकुमारी ने उसी समय यह निर्णय लिया कि वह उस विशेष अमरफल के पेड़ के स्वामी से ही विवाह करेगी।



Aalsi Ram



                  राजा को जब राजकुमारी की इस अजीब से निर्णय का पता चला, तो उसने घोषणा की, कि राज्य के सभी अमरफल के पेड़ों के स्वामी राजमहल में उपस्थित हों और अपने–अपने पेड़ों के फल भी साथ लेकर आएं। राज्य के सभी किसानों ने राजा के उस आदेश का पालन किया। राजकुमारी ने सभी किसानों द्वारा लाए गए अमरफलों को चखा, पर उनमें से किसी भी फल मे उस विशेष अमरफल का स्वाद न था।


                तब राजा ने पूछा कि क्या कोई ऐसा व्यक्ति रह गया है, जो इस सभा में उपस्थित न हुआ हो? तब लोगों ने बताया कि जी महाराज केवल एक व्यक्ति जो पूरे राज्य में "आलसी राम” के नाम से जाना जाता है, उसी का यहां आना बाकी है। लोगों ने राजा को बताया कि वह इतना आलसी है कि राजमहल तक भी आने को तैयार नहीं हुआ।



                 जब राजकुमारी को यह पता चला, तो उसने निश्चय किया कि वह स्वयं उस व्यक्ति के पास जाएगी। जब उसने उसके पेड़ का अमरफल चखा, तो वह जान गई कि यह वही व्यक्ति है जिसकी उसे तलाश थी।


               राजा "आलसी राम”की सच्चाई जानकर पहले ही बहुत परेशान था। कि राजकुमारी कैसे युवक से शादी करने का निर्णय ले चुकी है। राजा यह जानकर और भी दुखी हुआ कि राजकुमारी एक बेकार और निकम्मे इंसान के साथ विवाह करना चाहती है। क्योंकि उसने राजकुमारी को वचन दिया था, इसलिए वह उसे विवाह से तो न रोक सका, पर उसने राजकुमारी को राजमहल से निकाल दिया और अपनी जायदाद से भी बेदखल कर दिया।



                विवाह के बाद वे दोनों हंसी–खुशी उस अमरफल के पेड़ के नीचे ही रहने लगे। पेट भरने के लिए वह उसी वृक्ष के स्वादिष्ट फल खाते और मस्त रहते। कुछ समय के बाद जैसे उनका भाग्य उनसे रूठ गया। पेड़ ने फल देने बंद कर दिए और राजकुमारी भी बीमार पड़ गई।


               "आलसी राम”को यह सब देखकर बहुत दुख हुआ, साथ ही उसे यह अहसास भी हुआ कि वह अपनी पत्नी से कितना अधिक प्रेम करने लगा था। अतः उसने सोचा कि अब उसे कुछ करना ही होगा। क्यूंकि उसके जीवन में उसकी पत्नी से ज्यादा उसका किसी ने कभी भी ख्याल नहीं रखा था। अब वही उसके दुख–सुख की एकमात्र साथी थी, यदि उसको कुछ हो जाता है तो वह खुद भी उसके बिना जीवित नहीं रह सकेगा।


                इसलिए उसने निश्चय किया कि अब वह अपना आलस त्याग कर परिश्रम करेगा। उसने कड़ी मेहनत की और पास की ही खाली पड़ी जमीन पर अमरफल के पेड़ लगाने शुरू कर दिए। शीघ्र ही उसकी मेहनत रंग लाई और उसके द्वारा लगाए गए सभी पेड़ अच्छे फल देने लगे। अब वह उन फलों को अच्छे दामों पर बाजार में बेचने लगा। इस प्रकार उसके पास न केवल बहुत–सा धन इकट्ठा हो गया, अपितु उसकी सेवा और इलाज से उसकी पत्नी का स्वास्थ भी ठीक हो गया।


                    जब राजा को इस बात की खबर लगी, तो वह "आलसी राम”से बहुत प्रभावित हुआ। उसने राजकुमारी और “आलसी राम”दोनों को सम्मानपूर्वक अपने राजमहल में बुलाया राजमहल बुलाकर राजा ने राजकुमारी को पुनः अपनी जयजाद में हिस्सा दे दिया।


                   अब तो "आलसी राम”अपनी पत्नी के साथ सुख और शांति का जीवन बिताने लगा। क्यूंकि अब वह राजकुमार था, तो उसे किसी काम को स्वयं करने की क्या ही आवश्यकता थी। अब तो केवल उसके कहने मात्र की देर होती और नौकर–चाकर काम करने के लिए दौड़ पड़ते। पहले जहां वह अमरफल के पेड़ के नीचे कंकरों–पत्थरों, घास–फूस व फलों के ढेर पर पड़ा रहता था, वहीं अब राजकुमार बनते ही उसके सोने–लेटने के लिए आरामदायक मखमली गद्दे लगे हुए थे।


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                     कभी–कभार वह सोचता, जब मैं गरीब व आलसी था, तो सब मुझे "आलसी राम”कहते थे। अब जबकि मैं धनी व आलसी हूं, तो लोग मुझे राजकुमार कहकर सम्मान से पुकारते हैं आखिर अब भी तो मैं वही "आलसी राम”हुं क्यूंकि काम तो मैं अब भी नहीं करता। किसी ने सच ही कहा है कि धन में बड़ी ताकत होती है। यदि धन होने पर आलस करो तो राजकुमार और यदि धन विहीन होने पर आलस करो तो "आलसी राम”। सब मान–सम्मान धन का ही है।


Note: The story shared here is not my original creation, I have read and heard it many times in my life and I am only presenting its Hindi version to you through my own words.


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