शेखचिल्ली की कहानी | खुरपी को चढ़ा बुखार | Sheikh Chilli Ki Kahani

Lekhadda
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शेखचिल्ली की कहानी | खुरपी को चढ़ा बुखार |

 Sheikh Chilli Ki Kahani


                       शेखचिल्ली की ऊलजलूल हरकतों से आम जनता ही नहीं उसके घर वाले भी बहुत परेशान थे। एक दिन उसकी मां ने उससे कहा, "बेटा, चिल्ली! अब तो तू बड़ा हो गया है। घर का कुछ कामकाज भी किया कर।" जिससे मेरी थोड़ी मदद हो सके। मुझे भी ऐसा न लगे कि मैं अकेले ही पूरे घर का बोझ उठा रही हूं।


                  अपनी मां से इस तरह की बात सुनकर शेखचिल्ली ने अपनी मां को आश्वासन दिया कि कल से वह घर का कामकाज अवश्य किया करेगा।

           

शेखचिल्ली की कहानी  खुरपी को चढ़ा बुखार | Sheikh Chilli Ki Kahani

    

   अगले दिन उसकी मां ने उसे खुरपी देते हुए कहा,कल तूने कहा था कि तू मेरे काम में हाथ बटाएगा "जा बेटा, आज तू बकरी के लिए खेत से घास खोदकर ले आ। "


                    शेखचिल्ली खुरपी लेकर खेत में गया और घास खोदने लगा। घास खोदते-खोदते उसे दोपहर हो गई तक उसने देखा कि अब तो काफी देर हो गई है तो उसने जितनी घास खोदी थी उसका एक गट्ठर बनाया और उस गट्ठर को सिर पर लादकर घर की ओर चल पड़ा, लेकिन जब शेखचिल्ली बीच रास्ते में पहुंचा तो उसे ध्यान आया कि उसकी खुरपी तो खेत में ही रह गई। 


                  वह उल्टे पैर अपनी खुरपी लेने के लिए खेत कि ओर भागा कि कहीं कोई उसकी खुरपी ना उठा ले जाए। जब वह खेत में पहुंचा तो उसने देखा उसकी खुरपी तो वहीं पड़ी है, वह खुरपी के पास गया और खुरपी को उठाने लगा तो वैसे ही खुरपी को हाथ से छोड़ दिया क्युकी खुरपी दोपहर की धूप में पड़े-पड़े इतनी गरम हो गयी थी की उसे हाथ से पकड़ना भी मुश्किल था


                  शेखचिल्ली ने सोचा कि संभवतः खुरपी को बुखार आ गया है। मै घर पहुंच कर इसे तुरंत हकीम से दवा दिलवाऊंगा। जैसे-तैसे शेख़चिल्ली ने खुरपी को उठाया और अपने साथ घर ले गया। घर पहुंचकर शेखचिल्ली ने घास का गट्ठर एक तरफ रखा और खुरपी को लेकर हकीम के पास दौड़ा। वह बोला, “हकीम साहब, मेरी खुरपी को बुखार आ गया है, इसके लिए कोई दवा दीजिए। "हकीम ने सोचा कि यह तो निरा ही मूर्ख है। भला, औजारों को भी कभी बुखार आता है। पर हकीम नें भी मजाक में कह दिया कि अरे हां, इसे तो बहुत तेज बुखार है, लेकिन मेरे पास, “खुरपी के बुखार की कोई दवा तो है नहीं, परन्तु एक उपाय अवश्य है।"


               शेखचिल्ली बोला, “तो उपाय ही बता दीजिए मुझे तो बस अपनी खुरपी का बुखार उतारना है चाहे वह दवा से उतरे या फिर किसी उपाय से।"


               हकीम बोला, “तुम इस खुरपी को एक रस्सी से बांधकर पानी वाले कुएं में तीन-चार बार डुबकी लगवाना। इसका बुखार अवश्य उतर जाएगा ।"


              शेखचिल्ली घर पहुंचा और जैसा हकीम ने बताया था, शेखचिल्ली ने खुरपी को रस्सी से बांधा और पास ही के एक कुएं में डुबकी लगवाने लगा। कुछ ही देर में खुरपी ठंडी हो गई। शेखचिल्ली ने सोचा कि यह तो बुखार की अचूक दवा है। दुर्भाग्यवश कुछ दिनों बाद ही उसके पड़ोस की एक बूढ़ी महिला को भी तेज बुखार आ गया। अब शेखचिल्ली ने सोचा कि ये बेचारे बूढ़ी के घरवाले कहाँ हकीम के चक्कर लगाएगें, इससे पहले मैं ही इनको बुखार उतारने का उपाय बता दूँ आखिरकार उपाय तो मुझे उस हकीम ने ही बता है।


               यह सोचकर शेखचिल्ली अपने पड़ोसी के पास गया और बोला  किसी को भी हकीम के पास जाने की जरूरत नहीं है। मुझें इनके बुखार उतारने का उपाय अच्छे से मालूम है, मुझे यह उपाय खुद हकीम ने ही बताया है। उसने बूढ़ी महिला के घरवालों को बताया कि इन्हें एक रिस्सी से बांधकर कुएं में एक दो बार डुबोकर निकाल लो।

              

               बुखार खुद उतर जाएगा। हैरानी में सबने शेखचिल्ली से पूछा कि क्या सच में ये नुस्खा हकीम साहब ने बताया है? शेखचिल्ली ने पूरे विश्वास के साथ कहा, “हां, बिल्कुल उन्होंने ही मुझे बताया है और इससे तेज से तेज बुखार भी झट से उतर जाता है,” मैंने खुद इस उपाय को अपनाया है, और इसका असर भी देखा है, जो बहुत कारगर है तेज बुखार उतारने के लिए।


               शेखचिल्ली की बात को सच मानकर उसके पड़ोसी ने एक रस्सी ली और अपनी बुढ़ी मां को भी उसी कुएं पर ले गया जिस कुएं में शेखचिल्ली ने खुरपी को डुबकी लगवाई थी। फिर उसने अपनी मां को रस्सी से बांधकर कुएं में लटकाया और बार-बार डुबकी लगवाने लगा। उसकी बुढ़ी मां काफी चीखती-चिल्लाती रही, लेकिन उसने अपनी मां की एक नहीं सुनी। कुछ देर बाद जब उस बुढ़िया को बाहर निकाला, तो उसका पूरा शरीर ठंडा पड़ गया था। शेखचिल्ली ने उसे छुआ और खुशी में कहने लगा, “देखो! मैंने कहा था न कि बुखार पूरी तरह से उतर जाएगा।”


                    अब उस बूढ़ी औरत के घरवाले गुस्से में शेखचिल्ली पर चिल्लाने लगे। उन्होंने कहा कि अरे मूर्ख तुम्हें नहीं पता कि ये दुनिया से ही चल बसी हैं, इसलिए इनका पूरा शरीर ठंडा हो गया है। शेखचिल्ली ने भी गुस्से में जवाब दिया कि मैंने बोला था कि इससे बुखार उतरेगा और वो उतर गया है। “अब अगर इनकी जान चली गई है, तो इसमें मेरी क्या गलती? सारी गलती हकीम की है, आखिर ये उपाय उस हकीम का ही तो बताया हुआ है।”


                   अब सारे लोग गुस्से में भागते हुये उस हकीम के पास जा पहुँचे और उसको सारी बात बताई। यह सुनते ही हकीम ने दुखी होकर अपना माथा पीट लिया, फिर धीमी आवाज में बोला, “अरे! भाई मैंने तो वो इलाज गर्म खुरपी को ठंडा करने के लिए बताया था। किसी इंसान का बुखार उतारने के लिए नहीं।” मुझे क्या मालूम था कि यह मूर्ख मेरे बताये उपाय का इस्तेमाल किसी इन्सान पर करेगा।


                तब हकीम ने शेखचिल्ली को फटकारते हुए कहा, "अरे मूर्ख! वह उपाय तो औजारों का बुखार उतारने के लिए था। तेरी बेवकूफी के कारण ही इस महिला की मृत्यु हुई है। अब मैं कुछ नहीं कर सकता।"


                 हकीम की बात सुनकर सब लोगों ने मिलकर शेखचिल्ली को खूब डांटा और उसे पीटने लगे। किसी तरह से शेखचिल्ली वहां से भाग निकला। बेचारा शेखचिल्ली रोता-बिलखता अपने घर लौट आया।


कहानी कि सीख:-


               यह जरूरी नहीं कि जो दवा एक आंख को अच्छा करे, वह दूसरी को भी अच्छा कर सके। बिना सोचे-समझे किसी की भी बात नहीं मान लेनी चाहिए। इससे खुद का ही नुकसान होता है। 




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